रामधारी सिंह दिनकर – कोई अर्थ नही

रामधारी सिंह दिनकर – कोई अर्थ नही | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ‘ (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे।[ वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को इनके काव्य की मूल-भूमि मानते हुए इन्हे ‘युग-चारण’ व ‘काल के चारण’ की संज्ञा दी गई है।

कोई अर्थ नही – रामधारी सिंह दिनकर


नित जीवन के संघर्षों से
जब टूट चुका हो अन्तर्मन ,
तब सुख के मिले समुंदर का
रह जाता कोई अर्थ नही |

जब फसल सुख कर जल के बिन
तिनका – तिनका बन गिर जाये ,
फिर होने वाली वर्षा का
रह जाता कोई अर्थ नही |

सम्बन्ध कोई भी हो लेकिन
यदि दुःख मे साथ न दें अपना ,
फिर सुख मे उन सम्बन्धों का
रह जाता कोई अर्थ नही |

छोटी -छोटी खुशियों के क्ष्ण
निकल जाते हैं रोज़ जहाँ ,
फिर सुख की नित्य प्रतीक्षा का
रह जाता कोई अर्थ नही |

मन कटुवाणी से आहत हो
भीतर तक छलनी हो जाये ,
फिर बाद कहे प्रिय वचनों का
रह जाता कोई अर्थ नही |

सुख साधन चाहे जितने हो
पर काया रोगों का घर हो ,
फिर उन अनगनित सुविधाओ का
रह जाता कोई अर्थ नही |

निबंध संग्रह- रामधारी सिंह दिनकर

निबंध संग्रह

  1. मिट्टी की ओर (1946ई०)
  2. अर्द्धनारीश्वर (1952ई०
  3. रेती के फूल (1954ई०)
  4. हमारी संस्कृति (1956ई०)
  5. वेणुवन (1958ई०)
  6. उजली आग (1956ई०)
  7. राष्टभाषा और राष्ट्रीय एकता (1958ई०)
  8. धर्म नैतिकता और विज्ञान (1959ई०)
  9. वट पीपल (1961ई०)
  10. साहित्य मुखी (1968ई०)
  11. आधुनिकता बोध (1973ई०)

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