108 NAMES OF DURGA IN HINDI AND ENGLISH

108 names of durga

108 names of durga in hindi and english

माँ दुर्गा, जिसका शाब्दिक अर्थ है रक्षक, का जन्म विजेता-राजा महिषासुर को हराने के लिए हुआ था। जब देवी सरस्वती, देवी लक्ष्मी और देवी पार्वती ने दस हाथों वाली महादेवी दुर्गा के रूप में अवतार लिया तो अन्य उन्हें अन्य देवताओं से वरदान प्राप्त हुए।

इंद्र ने उन्हें अपना वज्र दिया, वरुण ने उन्हें अपना शंख दिया, अग्नि ने उन्हें एक भाला दिया, वायु ने उन्हें एक धनुष और बाण दिया, विश्वकर्मा ने उन्हें अपनी कुल्हाड़ी और एक कवच दिया, और पहाड़ों के स्वामी ने उन्हें एक शेर दिया।

इस प्रकार देवताओं की शक्तियों से युक्त होकर देवी ने महिषासुर को हराया है। हिंदू धर्म में इस त्योहार को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है जिसका समापन विजयादशमी पर होता है।

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108 names of Durga in Hindi and English with meaning.

1. सती-  SATI – अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली-To be alive by burning in fire
2. साध्वी- SADHVI- आशावादी-Optimistic
3. भवप्रीता- BHAWPRITA- भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली-Lover of lord shiva
4. भवानी- BHAWNI- ब्रह्मांड में निवास करने वाली-Inhabited by the universe
5. भवमोचनी- BHAWMOCHNI- संसारिक बंधनों से मुक्त करने वाली-Free from worldly bonds
6. आर्या- AARYA- देवी-Goddess
7. दुर्गा- DURGA- अपराजेय-Invincible
8. जया- JAYA- विजयी-Victorious
9. आद्य- AADHYA- प्राचीन-primitive
10. त्रिनेत्र- TRINETRA- तीन आंखों वाली-Three eyed
11. शूलधारिणी- SHOOLDHARNI- शूल धारण करने वाली-Trident holder
12. पिनाकधारिणी- PINAAKDHAARNI- शिव का त्रिशूल धारण करने वाली-One who holds the trident of Shiva
13. चित्रा- CHITRA- सुरम्य, सुंदर-Picturesque, beautiful
14. चण्डघण्टा- CHANDGHANTA- प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली-Bell-rousing
15. महातपा- MAHAATAPA- भारी तपस्या करने वाली -Heavy meditator
16. मन- MAN- मनन-शक्ति-Thinking power
17. बुद्धि- BUDHDHI- बोध शक्ति-Comprehension power
18. अहंकारा- AHANKAARA- अभिमान करने वाली-Proud
19. चित्तरूपा- CHITTRUPA- वह जो सोच की अवस्था में है-The one who is in a state of thinking
20. चिता- CHITA- मृत्युशय्या-Deathbed
21. चिति- CHITI- चेतना-Consciousness
22. सर्वमन्त्रमयी- SARV-MANTRA-MAYI- सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली-Knowledgeable of all mantras
23. सत्ता- SATTHA- जो सब से ऊपर है-Who is above all
24. सत्यानंद स्वरूपिणी- SATYANAND SVARUUPINI- अनन्त आनंद का रूप-Form of eternal bliss
25. अनन्ता- ANANTA- जिनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं-Whose nature is no end
26. भाविनी- BHAVINI- सबको उत्पन्न करने वाली-All-encompassing
27. भाव्या- BHAVYA- भावना एवं ध्यान करने योग्य-Noticeable
28. भव्या- BHAVYA- कल्याणरूपा, भव्यता के साथ-With grandeur
29. अभव्या- ABHAVYA- जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं-Nothing is more grand
30. सदागति- SADAGATI- हमेशा गति में, मोक्ष दान-Salvation donation


108 NAMES OF DURGA IN HINDI AND ENGLISH


31. शाम्भवी- SHAMBHAVI- शिवप्रिया, शंभू की पत्नी-Shambhu’s wife
32. देवमाता- DEVMAATA- देवगण की माता-Mother of Gods
33. चिन्ता- CHINTA- चिन्ता-Care
34. रत्नप्रिया- RATNA-PRIYA- गहने से प्यार करने वाली-Jewelry lover
35. सर्वविद्या- SARV-VIDHYA- सर्वज्ञ-Omniscient
36. दक्षकन्या- DAKSH-KANYA- दक्ष की बेटी-Daksha’s daughter
37. दक्षयज्ञविनाशिनी- DAKSH-YAGYA-VINASHINI- दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली-The one who stopped the Yajna of Daksh
38. अपर्णा- APARNA- तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली-One who does not eat leaves at the time of penance
39. अनेकवर्णा- ANEKVARNA- अनेक रंगों वाली-Multicolored
40. पाटला- PAATLA- लाल रंग वाली-The red one
41. पाटलावती- PAATLAAVATI- गुलाब के फूल-Roses
42. पट्टाम्बरपरीधाना- PATTAAMBAR-PARIDHAANAA- रेशमी वस्त्र पहनने वाली-Silk wearer
43. कलामंजीरारंजिनी- KALAA-MANJIRAARANJINI- पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली-Happy wearing a anklet
44. अमेय- AMEYA- जिसकी कोई सीमा नहीं-Which has no limit
45. विक्रमा- VIKRAMA- असीम पराक्रमी-Infinitely mighty
46. क्रूरा- KURURA- दैत्यों के प्रति कठोर-Cruel for monsters
47. सुन्दरी- SUNDARI- सुंदर रूप वाली-Beautiful appearance
48. सुरसुन्दरी- SUR-SUNDARI- अत्यंत सुंदर-Extremely beautiful
49. वनदुर्गा- VANDURGA- जंगलों की देवी-Goddess of the woods
50. मातंगी- MAATANGI- मतंगा की देवी-Goddess of matanga
51. मातंगमुनिपूजिता- MAATANG-MUNI-PUJITAA- बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय-Venerated by Baba Matang
52. ब्राह्मी- BRAAHMEE- भगवान ब्रह्मा की शक्ति-Power of lord brahma
53. माहेश्वरी- MAAHESHWARI- प्रभु शिव की शक्ति-Power of lord shiva
54. इंद्री- INDREE- इंद्र की शक्ति-Power of indra
55. कौमारी- KAUMAAREE- किशोरी-Virgin
56. वैष्णवी- VAISHNAVEE- अजेय-Unstoppable
57. चामुण्डा- CHAMUNDAA- खोपड़ियों को धारण करने वाली -Skull holder
58. वाराही- VAARAAHEE- शेर पर सवार होने वाली-Lion rider
59. लक्ष्मी- LAKSHMI- सौभाग्य की देवी-Goddess of good luck
60. पुरुषाकृति- PURUSHAAKRTI- वह जो पुरुष धारण कर ले-The one who takes male form
61. विमिलौत्त्कार्शिनी- VIMILA+UTKARSHINI- आनन्द प्रदान करने वाली-Delightful

माँ दुर्गा के 108 नाम


62. ज्ञाना- GYAANAA- ज्ञान से भरी हुई-Full of knowledge
63. क्रिया- KRIYA- हर कार्य में होने वाली-To be in every work
64. नित्या- NITYA- अनन्त-Everlasting
65. बुद्धिदा- BUDDHIDA- ज्ञान देने वाली-Knowledge giver
66. बहुला- BAHULAA- विभिन्न रूपों वाली-Various forms
67. बहुलप्रेमा- NAHULPREMA- सर्व प्रिय-Dear to all!
68. सर्ववाहनवाहना- SARVA-VAAHAN-VAAHANA- सभी वाहन पर विराजमान होने वाली-Boarding all vehicles
69. निशुम्भशुम्भहननी- NISHUMBH-SUMBH-HANANEE- शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली-nishumbh and sumbh destroyer
70. महिषासुरमर्दिनि- MAHISH+ASHUR-MARDINI- महिषासुर का वध करने वाली-mahishasura destroyer
71. मसुकैटभहंत्री- MASU-KAITHABH-HANTREE- मधु व कैटभ का नाश करने वाली-madhu and kaithabh destroyer
72. चण्डमुण्ड विनाशिनि- CHAND-MUND-VINAASHINI- चंड और मुंड का नाश करने वाली-chand and mund destroyer
73. सर्वासुरविनाशा- SARVAASUR-VINASHA- सभी असुरों का नाश करने वाली-Destroyer of all asuras
74. सर्वदानवघातिनी- SARV-DAANAV-GHAATINEE- सभी दानव का नाश करने वाली-Destroyer of all demons
75. सर्वशास्त्रमयी- SARV-SHASTRA-MAYI- सभी शास्त्रों में निपुण-Proficient in all scriptures
76. सत्या- SATYAA- सच्चाई-truth
77. सर्वास्त्रधारिणी- SARV ASTRA-DHAARINEE- सभी हथियारों धारण करने वाली-Wearer of all arms

माँ दुर्गा के 108 नाम


78. अनेकशस्त्रहस्ता- ANEKA-SHASTRA-HASTA- हाथों में कई शस्त्र धारण करने वाली-Holding many weapons in his hands
79. अनेकास्त्रधारिणी- ANEK-ASTRA-DHAARINEE- अनेक अस्त्र को धारण करने वाली-Wearer of many arms
80. कुमारी- KUMAARI- सुंदर किशोरी-Beautiful teenager
81. एककन्या-EK-KANYA- एक कन्या के समान -Like a girl
82. कैशोरी- KAISHOREE- जवान लड़की-Young girl
83. युवती- YUVATEE- नारी-Woman
84. यति- YATI- तपस्वी-Ascetic
85. अप्रौढा- APRAUDHA- जो कभी पुराना ना हो-Never older
86. प्रौढा- PRAUDHA- जो पुराना है-Which is old
87. वृद्धमाता- VRDDHA-MATA- शिथिल-Relaxed
88. बलप्रदा- BAL-PRADA- शक्ति देने वाली-Power giver
89. महोदरी- MAHODAREE- ब्रह्मांड को संभालने वाली-the one who handles the universe
90. मुक्तकेशी- MUKT-KESHI- खुले बाल वाली-Open haired
91. घोररूपा- GHOR-RUPA- एक भयंकर दृष्टिकोण वाली-With a fierce attitude
92. महाबला- MAHAA-BALAA- अपार शक्ति वाली-High powered
93. अग्निज्वाला- AGNI-JVAALA- मार्मिक आग की तरह-Like a fiery fire
94. रौद्रमुखी- RAUDRA-MUKHEE- विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा-Fierce face like destroyer rudra
95. कालरात्रि- KAAL-RAATRI- काल की रात के समान-Like the night of kaal 
96. तपस्विनी- TAPASWINI- तपस्या में लगे रहने वाली-Renunciant 
97. नारायणी- NARAYANI- भगवान नारायण का दिव्य रूप-Divine form of lord narayan  
98. भद्रकाली- BADHRA-KAALI- काली का भयंकर रूप-Kali’s terrible form
99. विष्णुमाया- VISHNU-MAYAA- भगवान विष्णु की माया-Magic of lord vishnu
100. जलोदरी- JALODARI- ब्रह्मांड में निवास करने वाली-Inhabited by the universe
101. शिवदूती- SHIV-DUTI- भगवान शिव की दूत-Angel of lord shiva
102. कराली- KARAALI- भीषण रूपवाली स्त्री-Woman of horrific form
103. अनन्ता- ANANTAA- विनाश रहित-Destruction free
104. परमेश्वरी- PARMESHWAREE- सर्वोच्च देवी-Supreme goddess
105. कात्यायनी- KATYAAYANI- ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय-Venerated by sage Katyayan
106. सावित्री- SAVITREE-सधवा स्त्री-The woman whose husband is alive
107. प्रत्यक्षा- PRATYAKSHA- वास्तविक-actual
108.ब्रह्मवादिनी- BRAHMAVADINI- विदुषी महिला-Scholar woman

Shiv tandav Stotram lyrics in Hindi with meaning

Shiv tandav Stotram lyrics

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥१॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी, विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके, किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥२॥

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर, स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि, क्वचिद्दिगम्बरे विनोदमेतु वस्तुनि॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा, कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे, मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक, श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा, निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं, महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः॥६॥




शिव मन्त्र

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल, द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक, प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्, कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः, कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा, वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं, गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥९॥

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी, रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं, गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥१०॥

मन्त्र

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस, द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल, ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्, गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः, समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम॥१२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्, विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः, शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं, परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः॥१४॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं, पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं, विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्॥१५॥

इति श्रीरावण कृतम्, शिव ताण्डव स्तोत्रम्स सम्पूर्णम्

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shiv tandav stotram के बारे में कुछ और बातें

रावण ने शिव तांडव स्तोत्रम क्यों लिखा ? :

शिव तांडव स्तोत्रम को रावण ने सदियों पहले लिखा था। वैसे तो भारतीय महाकाव्य रामायण में रावण का एक कुख्यात चरित्र दिखाया गया है, जिसने भगवान राम की पत्नी माता सीता का अपहरण किया था।

लेकिन रावण का एक और चरित्र था, जो एक महान भक्त, चारों वेदों का ज्ञाता, ज्योतिष में निपूर्ण और एक महान कलाकार था।

भगवान शिव के कई रूप व नाम हैं जैसे शिव, शंकर आदि। लेकिन इन सबमें सबसे लोकप्रिय है शिव जी का भोलेनाथ रूप; भोलेनाथ का मतलब है जो भोला है और जिसको खुश करना आसान है।

किंवदंतियों के अनुसार भगवान शिव की जिस किसी ने भी भक्ति के साथ तपस्या की, भगवान उससे जल्दी ही खुश हो गए ओर उसको वरदान दिया।




सभी राक्षसों ने इसका अनुचित लाभ उठाया और भगवान शिव की पूजा की क्योंकि वे जानते थे कि उन्हें प्रसन्न करना आसान है और भगवान शिव खुश होकर उन्हें वरदान देंगे।

रावण और शिव तांडव स्तोत्रम की कहानी

रावण जो राक्षसों के राजा के रूप में जाना जाता था, एक महान पुजारी, राजा, योद्धा और भगवान शिव का भक्त था। उसको खुद पर व अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड था।

शिव तांडव स्तोत्रम की कहानी उस दिन से शुरू होती है जब रावण भगवान शिव को अपने साथ श्रीलंका ले जाने के लिए कैलाश पर्वत को अपने हाथ में उठाने की कोशिश करता है।

यह देख भगवान शिव ने जैसे ही अपने पैर के अंगूठे को दबाया तो रावण की उँगलियाँ कैलाश पर्वत के नीचे दब गयी।

रावण दर्द में चिल्लाने लगा, भगवान शिव के क्रोध से बचने के लिए रावण ने एक भजन गाया, जिसे लोकप्रिय शिव तांडव स्तोत्रम के रूप में जाना जाता है।

यह कहा जाता है कि भगवान शिव को संगीत से बहुत जल्दी प्रसन्न किया जा सकता है। भगवान शिव रावण के संगीत में तल्लीन थे और बेहद प्रसन्न हो गए। तब जाकर भगवान शिव ने रावण को छोड़ा ओर उसे वरदान भी दिया।

दक्षिण भारत की मान्यता के अनुसार जैसा की सद्गुरु बताते हैं, रावण जब कैलाश को जा रहा था तो शिव की प्रशंसा में स्तुति गाने लगा।

कुछ महत्वपूर्ण बातें

उसके पास एक डमरू था, जिसकी ताल पर उसने 1008 छंदों की रचना कर डाली, जिसे शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। उसके संगीत को सुन कर भगवान शिव बहुत ही आनंदित व मोहित हो गये।

रावण डमरू के साथ गाता जा रहा था और गाने के साथ–साथ उसने कैलाश पर्वत के दक्षिण की ओर से कैलाश पर्वत पर चढ़ना शुरू कर दिया।

रावण लगभग कैलाश पर्वत में पहुँचने ही वाला था, लेकिन शिवजी उसके संगीत में मंत्रमुग्ध थे, तो माता पार्वती ने देखा कि एक व्यक्ति ऊपर आ रहा था। तो माता पार्वती ने शिव को उनके हर्षोन्माद से बाहर लाने की कोशिश की।

वे बोलीं, “प्रभु रावण बिल्कुल ऊपर ही आ गया है”। लेकिन शिव अभी भी रावण के गीत मगन थे। जैसे तैसे माता पार्वती उनको संगीत के आनंद से बाहर लाने में सफल हुईं।

जब भगवान शिव ने देखा की लंकापति रावण शिखर तक पहुंच गया है तो भगवान शिव ने उसे अपने पाँव से धक्का मार कर कैलाश से नीचे गिरा दिया।




Shiv tandav stotram lyrics in Hindi

शिव तांडव स्तोत्र पाठ के लाभ ? :

शिव तांडव स्तोत्रम के जप के अनगिनत लाभ हैं। शिव तांडव स्तोत्रम का जप या श्रवण करने से अपार शक्ति, सुंदरता और मानसिक शक्ति मिलती है।

कहा जाता है कि स्तोत्रम का जाप करने से सारी नकारात्मक ऊर्जाएं दूर हो जाती हैं और वातावरण पवित्र हो जाता है।

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ (shiv tandav stotram lyrics in hindi) कब और कैसे करे? :

शिव तांडव स्तोत्रम का कोई विशिष्ट समय नहीं है और कोई भी किसी भी समय इसका जाप कर सकता है। हालाँकि,

निम्नलिखित समय पर इसका जप करने के कुछ विशेष लाभ हैं:

1) ग्रहण के दौरान: ऐसा कहा जाता है कि जब आप ग्रहण के समय ओम नमः शिवाय या शिव तांडव स्तोत्रम का जाप करते हैं, तो यह ग्रहों के सभी बुरे प्रभावों को कम करता है। ग्रहण के दौरान, जप, ध्यान या प्रार्थना अन्य समय की तुलना में सौ गुना अधिक प्रभावी है।

2) सुबह और शाम के दौरान: यह कहा जाता है कि ब्रह्म मुहूर्त के दौरान आप जो भी गतिविधि करते हैं, उसका प्रभाव कई गुना अधिक होता है। यह खपत की गई ऊर्जा की मात्रा को कम करता है और उत्पादकता को दोगुना करता है।

3) प्रदोष व्रत: प्रदोष काल किसी भी महीने का वह समय है जो 13 वें दिन पड़ता है और इसे त्रयोदशी तिथि के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि हर त्रयोदशी तिथि पर शिव तांडव स्तोत्रम का जाप करने से पापों का नाश होता है। ध्यान दें कि प्रदोष काल विभिन्न स्थानों के अनुसार बदलता रहता है।

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ (shiv tandav stotram lyrics in hindi) कैसे याद करें ? :

इस मंत्र का सही तरीके से जाप करना महत्वपूर्ण है। इन दिनों कई लोग अर्थ और सही उच्चारण को समझे बिना जल्दी में मंत्र पढ़ते हैं।

शिव तांडव स्तोत्रम सीखने के लिए, अर्थ और उच्चारण को समझने के लिए आपको पहले इसे 5-6 बार सुनना होगा। सुनने के बाद स्तोत्रम को साथ साथ गायन व श्रवण करें।

गायन करते समय स्तोत्रम सीखने की सिफारिश की जाती है, क्योंकि यह आपको इसे जल्दी याद रखने में मदद करेगा।

shiv tandav stotram Meaning

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले,
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं,
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥१॥

“जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले…” का अर्थ :

भगवान शिव के बालों से बहने वाले जल से उनका गला पवित्र हो रहा है, और उन्होंने अपने गले मैं साँप को हार की तरह लटकाया हुआ है। 

जब भगवान शिव डमरू बजाते हैं तो उनके डमरू से दमद-दमद-दमद की ध्वनि निकलकर हवा मैं फ़ैल रही है, भगवान शिव शंभु तांडव नृत्य कर रहे हैं, प्रभु हम सब को संपन्नता प्रदान करें।




जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी,
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके,
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥२॥

“जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी…” का अर्थ :

मैं भगवान शिव में गहरी आस्था रखता हूँ, उनके सिर से देवीय गंगा नदी बहती है जिसकी बहती धाराओं से उनका सिर सुशोभित है, भगवान शिव के बालों की जटाएं उलझी हुयी हैं।

देवीय गंगा इन उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं, भगवान शिव के माथे पर चमकदार अग्नि (तीसरे नेत्र के रूप में) जल रही है, और भगवान शिव अपने सिर पर आधे चंद्रमा को आभूषण के रूप में धारण किए हुये हैं।

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर,
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि,
क्वचिद्दिगम्बरे विनोदमेतु वस्तुनि॥३॥

“धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर…” का अर्थ :

मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे ऐसी मैं कामना करता हूँ, जिनके मन में सभी जीवों के साथ पूरा ब्रह्मांड मौजूद है।

आपकी पत्नी पार्वती, पर्वत राज की बेटी हैं, भगवन आपकी करुणामय झलक सभी कष्टों को दूर करती है, आप सर्वव्यापी हैं और आप अपने परिधान के रूप में दिव्य लोकों को धारण लिए हुये हैं।

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा,
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे,
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥४॥

“जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा…” का अर्थ :

प्रभु को मेरा नमस्कार ,आपके रेंगने वाले सर्प के लाल-भूरे फन पर जो मणि है वो विकिरण के कारण चमक रही है, इसकी चमक एसी है मानो ये प्रभापुंज दिशा की देवियों के मुख पर कुमकुम का लेप कर रहा है।

जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने वस्त्र धारण करने से स्निग्ध वर्ण हुए उन भूतनाथ में मेरा मन आनंद की अनुभूति करता है ।

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक,
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥५॥

“सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर…” का अर्थ :

हे प्रभु, हमें आप संपन्नता दें, आपकी जटा नागराज के हार से बंधी हुई है, आपका मुकुट चंद्रमा है।

आपकी चरण पादुकाएँ, इन्द्र आदि देवताओं के प्रणाम करने से, उनके मस्तक पर विराजमान फूलों की धूल के बहने से धूसरित हो रही हैं।

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा,
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं,
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः॥६॥

“ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा…” का अर्थ :

भगवान शिव के बालों की उलझी हुयी जटाओं से हमें संपन्नता प्राप्त हो। आपने ही कामदेव को अपने मस्तक पर प्रज्वलित हुई अग्नि के तेज से नष्ट किया था।

सभी देवलोकों के स्वामी आपको नमस्कार करते हैं आपका मुकुट चन्द्रमा की कला से सुशोभित है।

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल,
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक,
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥७॥

“करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल…” का अर्थ :

आपने अपने विकराल ललाट पर डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती हुयी प्रचंड अग्नि में कामदेव को भस्म कर दिया था।

पर्वतराज किशोरी के स्तनों पर सजावटी रेखाएं खींचने के एकमात्र कारीगर, भगवान शिव जिनके तीन नेत्र हैं, में मेरी रुचि हमेशा लगी रहे।

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्,
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः,
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥८॥

“नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्…” का अर्थ :

आप अलौकिक गंगा नदी को धारण करने के साथ ही पूरे संसार का भार उठाते हैं, प्रभु हमें संपन्नता दें।

चंद्रमा आपकी शोभा बड़ाता है, आपकी गर्दन ऐसी है जैसे बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि काली होती है।

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा,
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं,
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥९॥

“प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा…” का अर्थ :

जिनका कंठ ऐसा है जैसे खिले हुए नील कमल का समूह, जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है।

जो कामदेव को मरने वाले, त्रिपुर का अंत करने वाले, सांसारिक जीवन के बंधनों से मुक्त करने वाले, बलि का अंत करने वाले, दैत्य का विनाश करने वाले, हाथियों को मरने वाले और मृत्यु के देवता यम को पराजित करने वाले हैं । उन भगवान शिव की मैं प्रार्थना करता हूं,

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी,
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम्।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं,
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥१०॥

“अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी…” का अर्थ :

मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जो अभिमान से रहित पार्वती जी के कलारूप कदम्ब मंजरी के शहद की मधुर सुगंध का पान करने वाले भँवरे हैं

तथा जो कामदेव को मरने वाले, त्रिपुर का अंत करने वाले, सांसारिक जीवन के बंधनों से मुक्त करने वाले, बलि का अंत करने वाले, अंधक दैत्य का विनाश करने वाले, हाथियों को मरने वाले और मृत्यु के देवता यम को पराजित करने वाले हैं ।




जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस,
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल,
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः॥११॥

“जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस…” का अर्थ :

मृदंग के ढिमिड ढिमिड तेज आवाज के साथ जिनका प्रचंड तांडव नृत्य हो रहा है,

जिनके महान मस्तक भयंकर अग्नि है, जो बड़े वेग के साथ घूमते हुए साँपों के फुफकारने से धधकती हुई फैल रही है, उन भगवान शंकर की जय हो।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्,
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः,
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम॥१२॥

“दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्…” का अर्थ :

मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, जो पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, सांप और मोतियों की माला में, सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और मिटटी के ढेले में, मित्रों और शत्रुओं के प्रति, घास के तिनके और कमल में, प्रजा और राजाओं में समान भाव रखते हैं?

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्,
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः,
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥१३॥

“कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्…” का अर्थ :

सुन्दर ललाट वाले भगवान शिव जिन्होंने चंद्रमा को अपने मुकुट में धारण किया हुआ है, जिनमें में मन को एकाग्र करके अपने कुविचारों को त्यागकर अलौकिक गंगा नदी के निकट गुफा में रहते हुए सिर पर हाथ जोड़ जीवंत नेत्रों से शिव मंत्र बोलते हुये मैं कब सुखी होऊंगा ?

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं,
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः॥१४॥

“निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका…” का अर्थ :

जिस प्रकार देवांगनाओं के सिर में गूंथे हुए फूलों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधित पराग की खुशबू होती है, उस से भी अधिक मनोहर मेरे शिव जो परम शोभा के धाम हैं, आपके अंगों की सुंदरता परम आनंद से युक्त हमारे मन की प्रसन्नता को हमेसा बढ़ाती रहें.

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं,
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं,
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्॥१५॥

“इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं…” का अर्थ :

जो मनुष्य इस उत्तमोत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ, स्मरण और वर्णन करता है वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और शीघ्र ही महान गुरु शिव की भक्ति पाता है।

इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग नहीं है। क्योंकि शिव जी का ध्यान-चिंतन ही मोह का नाश करने वाला है।