खरगोश और भेड़िया की कहानी – हिंदी कहानी |

खरगोश और भेड़िया की कहानी- एक चतुर खरगोश अक्सर छोटे भेड़िए को मूर्ख बना कर उसका मजाक उड़ाया करता था। एक दिन भेड़िए ने किसी की आवाज सुनी, “हाय ! ओह!! अरे!!!” जब भेड़िए ने अपने आसपास देखा, तो वहां एक खरगोश भारी पत्थर को सहारा दिए खड़ा था। “यह तुम क्या कर रहे हो?” भेड़िए ने

हैरान होकर पूछा। “मैंने इस भारी पत्थर से आसमान को रोक रखा है। अगर यह पत्थर हिला, तो आसमान हम पर गिर पड़ेगा और हम सब दब कर मर जाएंगे,” खरगोश ने जवाब दिया।

मासूम भेड़िया बोला, “मुझे तो किसी ने बताया ही नहीं कि आसमान गिरने वाला है। क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं?” “हां, तुम इस भारी पत्थर को हाथ से सहारा दे दो। मैं इसे टिकाने के लिए कोई टहनी खोज लाता हूं,” खरगोश ने भेड़िए से विनम्रतापूर्वक कहा।

भेड़िए ने पत्थर को हाथों से सहारा दिया और खरगोश वहां से चलता बना। कुछ ही देर में भेड़िया बुरी तरह थक गया। उसने खरगोश को आवाजें लगाईं, लेकिन खरगोश वहां से रफूचक्कर हो चुका था। वह अपने दोस्तों के बीच शेखी बघार रहा था कि उसकी चाल कितनी कामयाब रही।

भेड़िए के पंजे फिसलने लगे। ‘कोई बात नहीं… अगर आसमान गिरता है, तो गिर जाए। अब मैं इसे और नहीं संभाल सकता,’ उसने सोचा। फिर वह पत्थर से हाथ हटा कर वहीं बैठ गया। पर यह क्या! न तो आसमान गिरा और न ही वह पत्थर लुढ़का। उसे यह जान कर बहुत गुस्सा आया कि खरगोश उसे मूर्ख बना कर, उसके चंगुल से बच कर निकल गया था।

लेकिन भेड़िए ने अभी सबक नहीं लिया था। एक बार वह फिर से खरगोश की बातों के जाल में आ गया। वह तो हमेशा का ही मूर्ख ठहरा। कुछ ही दिनों बाद छोटे भेड़िए ने शाम को किसी के द्वारा ‘सड़प-सड़प’ कर पानी पीने की आवाज सुनी।

भेड़िया उस ओर जा पहुंचा। वहां उसने खरगोश को नाले का पानी पीते हुए देखा। वह इस तरह पानी के बड़े-बड़े घूंट भर रहा था, मानो सारा नाला ही पी जाएगा। भेड़िए ने बहुत दिमाग लगाया, पर उसे खरगोश के इस बर्ताव का कारणं समझ में नहीं आया। जब उससे नहीं रहा गया, तो उसने पूछ ही लिया, “खरगोश! तुम जल्दी-जल्दी इतना पानी क्यों पीते जा रहे हो?”

खरगोश तो इसी इंतजार में था कि भेड़िया उसके पास आए। उसने कहा, “क्या तुम्हें नाले में पनीर का टुकड़ा दिखाई दिया?” भेड़िए को नाले में चांद की परछाईं दिखी और उसे लगा कि वह पनीर का टुकड़ा है।

“वाह! यह हमें कैसे मिल सकता है?” भेड़िए ने ललचा कर पूछा।

“मुझे लगता है कि अगर हम इस नाले का सारा पानी पी लें, तो यह पनीर हमें मिल सकता है। पर एक ही परेशानी है…,” खरगोश ने बात बनाई। भेड़िया उसके जाल में फंस रहा था। “कैसी परेशानी?” भेड़िए ने पूछा।

“देखो, मेरा तो छोटा-सा पेट है। मैं भला कितना पानी पी सकता हूं। तुम मुझसे बड़े हो। अगर तुम भी पानी पियो, तो नाले का पानी जल्दी खत्म हो जाएगा,” इस प्रकार खरगोश ने अपनी चाल चली। भेड़िया उसकी बातों में आ ही गया। वह पनीर खाने के लालच में नाले के पानी से बड़े-बड़े घूंट भरने लगा और खरगोश सीटी बजाते हुए वहां से चल दिया। उसे अपने दोस्तों को खोज कर यह बताना था कि उसने आज फिर भेड़िए को कैसे मूर्ख बनाया है।

उधर भेड़िया लालच के मारे तब तक पानी पीता रहा, जब तक उसका पेट फटने नहीं लगा। फिर भी नाले का पानी कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। जब वह अधमरा हो गया, तो उसने तय किया कि पनीर न खाना ही बेहतर होगा और वह अपना-सा मुंह ले कर वहां से लौट गया।

बुद्धिमान खरगोश – बच्चो के लिए खरगोश की कहानी |

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