खरगोश की कहानी – किसी जंगल में एक शेर रहता था। वैसे तो शेर बहुत बलशाली होता है, लेकिन अगर बहुत से जंगली जानवर मिल कर उसका पीछा करने लगें, तो उस भी भागना पड़ता है। इस शेर के साथ भी यही हुआ। उसके पीछे जंगली कुत्तों का एक झुंड पड़ गया। शेर तेजी से भागने लगा, ताकि उनसे अपनी जान बचा सके। लेकिन वे उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहे थे। ऐसे में शेर भागते-भागते थक गया था।
तभी उसे पेड़ के नीचे बैठा भोला दिखाई दिया। उसने सोचा कि भागने से कोई फायदा नहीं। वह कुत्तों का मुकाबला नहीं कर सकता, इसलिए छिपने में ही भलाई है। उसने भोला के आगे हाथ जोड़कर कहा, “ये जंगली कुते मुझे मार डालेंगे। मेहरबानी करके मुझे कहीं छिपा दो।”
भोला ने पेड़ के पीछे वाली झाड़ियों में शेर को छिपा दिया। जब जंगली कुत्ते वहां आए, तो उन्होंने भोला से पूछा, “क्या तुमने किसी शेर को यहां से जाते देखा है?” उसने कहा, “हां, वह अभी उस पहाड़ी की ओर गया है।” यह सुन कर सारे कुत्ते पहाड़ी की ओर चल दिए।
शेर ने कुछ देर इंतजार किया और फिर बाहर आ गया। बाहर आते ही उसने भोला को दबोच लिया।
“अरे, मैंने तो तुम्हारी जान बचाई है भोला ने शेर को समझाया।
शेर बोला, “मैं तो भाग-भाग कर थक गया हूँ। अब तुम्हें ही खा कर अपनी भूख मिटाऊंगा।”
बेचारा भोला डर के मारे थर-थर कांपने लगा। वहीं एक खरगोश घास चर रहा था। उसने उन दोनों से पूछा कि क्या बात हो गई। तब भोला ने रोते हुए बताया, “मैंने अभी इस शेर को जंगली कुत्तों के झुंड से बचाया है और अब यह मुझे ही खाना चाहता है।”
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“इसमें मैं क्या कर सकता हूं; भूख लग रही है, तो खाना ही पड़ेगा,”
शेर ने अपनी सफाई दी।
“शायद मैं कोई निपटारा कर सकता हूं। तुम जा कर मेरे लिए ‘भाग जा – यहां से’ पेड़ की टहनी ले आओ। मैं अभी फैसला कर देता हूं,” खरगोश ने भोला से कहा।
खरगोश चाहता था कि भोला इस बहाने से भाग जाए, लेकिन वह तो बिल्कुल मूर्ख निकला। दो मिनट बाद ही हाथ में एक टहनी ले कर वापस आ गया और बोला, “भाग जा यहां से’ पेड़ का तो पता नहीं चला। वे दूसरे पेड़ की टहनी ले आया हूं। अब क्या करना है?”
“मुझे ‘भाग जा यहां से’ पेड़ की टहनी चाहिए। यह वह टहनी नहीं है, यह कह कर खरगोश ने भोला को दोबारा मौका दिया। भोला फिर एक दूस टहनी ले आया। खरगोश समझ गया कि भोला के बस की कोई बात नहीं है। इस बार वह शेर के कान में बोला, “यह आदमी मूर्ख है। मैं ही इसके साथ जा कर टहनी ले आता हूं। फिर फैसला आसानी से हो जाएगा।”
इस पर भोला ने कहा, “मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा कौन-सा पेड़ होता है। फैसला करने के लिए टहनी की क्या जरूरत है। ऐसे ही बता दो। बार-बार मुझे भेज कर थका रहे हो।”
यह सुनकर खरगोश ने अपना माथा पीट लिया। वह सोचने लगा, ‘कैसे मूर्ख व्यक्ति से पाला पड़ गया है। जान बचाने का मौका मिलने पर भी यह उसका फायदा नहीं उठा पा रहा है।’ इधर शेर भी कम मूर्ख नहीं था। उसने उन्हें जाने की इजाजत दे दी। वे दोनों वहां से चले गए और फिर वापस नहीं आए। अगर आप जंगल में जाएं, तो आज भी पेड़ के नीचे बैठे शेर को उस भागे हुए व्यक्ति और खरगोश का इंतजार करते देख सकते हैं।
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