Hindi poetry on life-Zindagi Ek paheli

poem on life

Hindi poetry on life – ज़िन्दगी एक पहेली |

ये जिंदगी भी अजीब है |

ये जिंदगी भी अजीब है
यह क्या है मुझे क्या पता
ये क्योँ है मुझे क्या खबर

कुछ दिनों की चमक धमक
कुछ दिनों की गम ज़दा
कभी खुशी हुई तो कभी रो पड़ी
कभी इस पहर तो कभी उस पहर


इस मुक्कमल जहान में भी
पुरसुकून की तलाश थी
कभी बोल केर वो चुप रही
कभी चुप होकर भी बोल पड़ी

चंद लम्हो में भिखर गयी
चंद लम्हो में उभर गयी

चन्द लम्हों में निखर गयी
ये जिंदगी भी अजीब है
यह क्या है मुझे क्या पता
ये क्यों है मुझे क्या खबर

कभी छीन कर वो ले गई
कभी देकर भी वो चली गई

क कभी उन शोहरतों पर ले गयी
कभी जिल्लतों पर उतार गयी
चलो शिकवा नहीं करू कभी

मुख़्तसर सा ही अख्तीयार है

ये जिंदगी भी अजीब है
यह क्या है मुझे क्या पता
ये क्योँ है मुझे क्या खबर

कभी हिम्मत भी दिला गयी

और बुजदिलों से भी मिला गयी

खुद को ना मिटा ज़रा ये बात भी वो कह गयी

पाया जब खुद को तनहा तो समझ भी वो दिला गयी

न रहेगा तेरा कोई तेरे खुदा के सिवा

ये बात भी वो बोल गयी

ये मुख़्तसर सी ज़िन्दगी है

कभी इस पहर तो कभी उस पहर

ये जिंदगी भी अजीब है
यह क्या है मुझे क्या पता
ये क्यों है मुझे क्या खबर

Hindi Poetry on Life- Zindagi Ek paheli

यूँ ही चलती रहती ज़िन्दगी

न होती गर्मी की बोछारे

न होती सर्दी की फुहारे

आम हो जाता आम आदमी का जीना

हल्दी सी पिली शक्लो पर छाई है केसे बेबसी

जम गया पानी भी आँखों का , रोने को केसी बेबसी

रोना किससे हसना किससे

कोन है दाता कोन सुनवाता

कोई न दुःख को हरने वाला

छोटी छोटी भेंट चढ़ाकर नाम कमाते आगे जाते

चमचम करती गाड़ी उनकी मुहं बनाती हंसती जाती

पत्ते से गिर कर खो जाते मिटटी में मिलकर रह जाते

खुश्की से सूखे होंटो पर हंसी भी डूबकर खो जाती

इतनी आबादी कोन गिने , कितने छूटे कितने गिरे

हँसना नन्ही सी कलियों , खा जाये धरती भूखी सी नज़रे

कह-कहकर थक गये सभी ,

रुका ना कुछ , ना कुछ हुआ है अभी

काश ! ज़िन्दगी बन जाये सपनो की रानी

फिर यूँ ही चलती रहे जिंदगानी |

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